HEMLATA DADEECH

चित्तौड़गढ़ के एक छोटे से गांव सुदरी जहाँ न कोई माध्यमिक विद्यालय था न प्राथमिक.. जहाँ पढ़ाई करने के लिए छोटे छोटे बच्चे भी गाँव से 5 किलोमीटर का कच्चा रास्ता तय करके गंगरार पढने आना पड़ता था, गांव में एक आम परिवार में जन्म हुआ। पिता मेथ्स के अध्यापक थे,चार भाई बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण उनको एक बडे बेटे के समान काम करना होता था. खेत से चारा काट के लाना, गायो को चारा खिलाना ,दूध निकालना, गोबर करकट, घर का झाड़ू पोछा, माँ की खाने में मदद करने के साथ साथ अपनी पढ़ाई लिखाई भी साथ करनी होती थी…

फिर भी दसवी तक विद्यालय में अव्वल रहती थीं.. गाँव में साइंस बायोलॉजी ना होने की वजह से , दादी माँ के रूढ़ि वादी विचारो के कारण बाहर जाकर आगे की पढ़ाई न होने पाई.. 12वी कक्षा आर्ट्स से पास होकर बी.ए. के प्रथम वर्ष में ही उदयपुर शादी करवा दी गयी। शादी के कामकाजों में उलझे रहने के कारण बी.ए. प्रथम वर्ष में फेल हो गई. उदयपुर जाकर आगे की पढ़ाई करने की आशा भी यहाँ संयुक परिवार में आकर खत्म सी हो गयी.. यहाँ बहु को बस घर के काम काज देखने खाना बर्तन करने की ही इज़ाज़त थी.. खैर अपने पति यानी का थोड़ा सपोर्ट रहा उन्होंने पढ़ाई करने के लिए कभी नही रोका.., तो प्राइवेट ही फॉर्म भर के अपनी रुकी रुई पढ़ाई को फिर से गतिमान किया..|

अपनी पढ़ाई का खर्च भी खुद वहन करने के लिए बी.ए.की पढ़ाई के साथ साथ एक 160 रु. महीने वेतन पर प्राथमिक मनीषी विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया..

वही B.A. के बाद C.Lib., B. Lib., M.lib. की डिग्रीयां ले कर पुस्तकालयाध्यक्ष बन ख़ुद को कॉलेज तक पहुँचाया।

कहते हैं ना कि चाहते इतनी प्रबल हो कि मंजिले खुद अपना रास्ता दिखाने लग जाये..

ऐसा ही कुछ हेमलता के साथ भी हुआ.. वो बचपन से ही पढ़ने और लिखने की शौकीन थी, कहती हैं कि हमेशा से ही किताबें मेरी सबसे प्रिय मित्र हैं । अब पढ़ने का समय भी था और साधन भी थे.. खुद अपनी पढ़ाई का खर्च भी वहन करने में सक्षम थी… तो पढाई को गतिशील रखते हुए M.A. in Hindi, M.A. in Rajasthani, और B.ed. की डिग्रीयां भी ले ली… साथ ही साथ बचपन का जो कविताये कहानियां लिखने पढ़ने का जो शोख था उसे यहाँ उड़ान मिली।

यहाँ की साहित्यिक संस्था युगधारा से परिचय हुआ , संबंद्धता ली और लेखनी को प्रबल किया.. आकाशवाणी रेडियो में गीत , कविताये, कहानियां देना शुरू की.. साथ ही कई स्थानीय पत्र पत्रिकाओं में कविताएं, गीत छपना शुरू हुए..

जैसे जैसे लेखनी को गति मिलती रहीं, वे अपने पैर और मजबूत करती गयी । वर्ष 2006 में सर्वप्रथम 2 पुस्तकें परी की सीख, लाडली दादोसा री एक साथ राजस्थान साहित्य अकादमी के प्रोत्साहन राशि के द्ववारा प्रकाशित हुई । स्थानीय बड़े लेखको में एक उभरता नाम हेमलता भी अब कही कही आने लगा था ।

मासिक कविगोष्ठियों में पत्र पत्रिकाओं में अखबारों में हेमलता का नाम भी आने लगा था, वे अपनी लेखन की विधाएं भी बढ़ाने लगी वे हिंदी एवं राजस्थानी में कविता, गीत, कहानी, लेख, संस्मरण, नाटक, एकांकी… आदि लिखती हैं ।

उनकी तृतीय पुस्तक टीकू चार आँखा रो को राष्ट्रीय बाल सहित्य पुरस्कार से मध्यप्रदेश में पुरस्कृत किया गया ।

इसके अलावा उनकी चोथी पुस्तक भारत को नमन स्थानीय पुस्तक भंडार के सहयोग से प्रकाशित हुई ।