Dharmishtha Rao

एक ग्रहणी जो माता पिता के आँगन में मनचाए तरीक़ों से रहती है फिर एक दिन शादी कर चली जाती है फिर शुरुआत होती है उसके ग्रस्त जीवन की शुरुआत जो की एक जंग से कम नहि फिर भी हर एक ग्रहणी अपने आपको भुलकर अपने घर परिवार के लिए रोज़ संघर्ष करती है लेकिन अपने परिवार को स्वस्त ख़ुशियों से भरा रखती है लेकिन अपने परिवार उसके अपनो पर आँच नहि आने देती एसी सभी महलाओ को मेरा सलाम वो महिला कोई भी हो सकती है आपकी अपनी माँ आपकी बेटी आपकी पत्नी आपकी बहन एसी सभी महिलाओं को में नमन करती हु ओर उनका सम्मान करती हु जो अपने होसलो को कभी जूकने नहि देती