Chitralekha

मेरे पिता का कम उम्र में कैंसर से खो देना, घर की बडी बेटी और कोई भाई ना होने नहीं होने की वजह से अकेले ही अपने पिता की जिन्दगी को बचाने की मैनें वो हरसम्भव को शश की, जो मुझे करनी चाहिये थी।

मैं उनके इलाज के लिये अहमदाबाद और मुम्बईं हर जगह उन्हें ले कर गईं। एक साधारण परिवार से होने की वजह से कईं बार पैंसो की मु श्कलें आई। एक-एक पैसे को बचाने के लिये मैं कईं मीलां पैदल चली।

मैंने आर्कगेट की नौकरी से जो भी बचत की थी, उससे और ESI का उपयोग करके अपने पिता इलाज में हरसम्भव मदद की। अकेले ही पिता के साथ उनकी इस बिमारी से लडती रही, लेकिन आखिरकार एक दिन कैंसर की जीत हुई।

पिताजी की आखिरी इच्छा थी कि मैं अपनी बेटी का कन्यादान करुं तो मैनें उसे पुरा करने के लिये कम उम्र में शादी की, लेकिन किस्मत की बैरूखी ऐसी थी कि शादी के 2 दिन पहले ही अपनी छोटी बहन को लकवा आने की वजह से ICU में रखा गया। अपनी बहन को ICU में रखते हुये और पिता का ध्यान रखते हुये मैंने जिन्दगी का वो दिन जीया जो हर लडकी का सपना होता है कि खु शी से शादी करना, लेकिन किस्मत ने इसमें भी मेरा साथ नहीं दिया।

शादी के 2 महिनें बाद ही मैंने अपने पिता को खो दिया और पिता के जाने के बाद से ससुराल में अपनी शादी को बचाने की मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मानसिक यंत्रणा, हिंसा और लडाइंर्यो की वजह से हमारी शादी ज्यादा नहीं चल पाईं और मुझे तलाक लेना पडा। अपने 3 साल के बच्चे के साथ मुझे घर से रात मे निकल जाने को कहा गया।

मैंने तलाक के बदले एक भी पैसा अपने और अपने बच्चे के लिये नहीं मांगा, जब मैनें अपने बच्चे के पिता को कहा, कि ये बच्चा मैं रखुंगी और मुझे कुछ भी नहीं चाहिये। तब जल्दी ही हमारा आपसी-समझौते से तलाक हो गया।

आज मैं अपने पैंरो पर खडी हूँ और अपनी माँ के साथ रहते हुए माँ, बहन और बच्चे की देख भाल अकेले करती हुँ। पिता निजी कार्य (प्राइवेट जॉब)के करने से घर मे कोइंर् ज्यादा आय का स्त्रोत नहीं था।

आज मैं सीक्योर मीटर्स में नौकरी करती हुँ और अपने पूरे परिवार चलाती हूँ ।